शुक्रवार, 12 मार्च 2010

बी बी सी हिंदी से साभार - विनोद वर्मा का ब्लॉग

मेरा परिवारवाद बनाम तेरा परिवारवाद

विनोद वर्मा विनोद वर्मा | बुधवार, 24 फरवरी 2010, 11:45 IST

सुना है कि लालकृष्ण आडवाणी इन दिनों ठीक तरह से सो नहीं पा रहे हैं.

उनके सपनों में दिवंगत विजया राजे सिंधिया आ रही हैं और उनसे शिकायत कर रही हैं कि वे उनके परिवार की राजनीति पर वार कर रहे हैं.

सुना है कि उनका कहना है कि वसुंधरा राजे सिंधिया उनकी बेटी होने की वजह से राजनीति में नहीं हैं और न ही वसुंधरा राजे का बेटा दुष्यंत उनकी वजह से भारतीय जनता पार्टी का टिकट पाता रहा है. उन्हें यह भी नाराज़गी है कि यशोधरा राजे लगभग दो दशक अमरीका में रहकर यदि मध्यप्रदेश में राजनीति कर रही हैं तो वह सिंधिया परिवार की वजह से तो है नहीं.

कहा जा रहा है कि जागते हुए भी लालकृष्ण आडवाणी जी को कई लोग परेशान कर रहे हैं.

लोग बता रहे हैं कि गोपीनाथ मुंडे मुँह फुलाए बैठे हैं कि उनकी बेटी पंकजा विधायक क्या बन गईं पार्टी को परिवारवाद दिख रहा है. उनका कहना है कि पूनम महाजन को टिकट इसलिए थोड़े ही मिला कि वे उनकी भतीजी हैं, वह तो दिवंगत नेता प्रमोद महाजन की बेटी होने के नाते मिला था.

सुना है कि सांसद मेनका गांधी कह रही हैं कि एक तो वे कांग्रेस वाले गांधी परिवार की काट की तरह पार्टी की सेवा कर रही हैं और उस पर अब आडवाणी जी को उनका बेटा वरुण अखर रहा है. उनकी शिकायत है कि एक तो पार्टी के लिए वरुण गांधी ने अपने सेक्युलर होने का पारिवारिक चोगा उतार दिया और उसका यह फल मिल रहा है.

हिमाचल के मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल सफ़ाई देते घूम रहे हैं कि आडवाणी जी ने जो परिवारवाद की बात कही है वह उनके बेटे अनुराग ठाकुर पर लागू नहीं होती.

अटल बिहारी वाजपेयी के भांजे अनूप मिश्रा और भतीजी करुणा शुक्ला भी सुना है कि सफ़ाई दे रहे हैं कि उन्होंने अटल जी के नाम से कभी राजनीति नहीं की, इसलिए उन्हें परिवारवाद की परिभाषा से अलग रखा जाए.

कल्याण सिंह को लग रहा है कि पार्टी से अलग क्या हुए आडवाणी जी को उनका बेटा राजबीर सिंह खटक रहा है.

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान राहत की साँस ले रहे हैं कि अच्छा हुआ उनकी पत्नी को पार्टी का टिकट नहीं मिला उधर जसवंत सिंह सोच रहे हैं कि अब आडवाणी उनके बेटे मानवेंद्र सिंह की राजनीति के पीछे पड़ गए हैं.

लेकिन भाजपा के निकटतम सहयोगी और पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल सुना है कि बेचैन हैं कि आडवाणी जी एनडीए में रहकर साथ देने का अच्छा सिला दे रहे हैं. उनका कहना है कि उनका बेटा सुखबीर सिंह अपने दम पर उप मुख्यमंत्री और पार्टी अध्यक्ष है. उनकी बहू हरसिमरत कौर अपनी क़ाबिलियत पर सांसद हैं. उनका भतीजा मनप्रीत बादल और उनके दामाद अवधेश सिंह कैरों इसलिए मंत्री हैं क्योंकि उनसे क़ाबिल लोग राज्य में थे ही नहीं. वे पूछ रहे हैं कि यदि सुखबीर के साले विक्रम सिंह मजीठा को मंत्री न बनाया होता तो सुखबीर के लिए कुर्सी कौन खाली करता?

सुना है कि बाला साहब ठाकरे कह रहे हैं कि यदि आडवाणी में ठीक राजनीतिक समझ होती तो वे उद्धव ठाकरे को परिवार के बेटे की तरह आगे बढ़ाते. वे कह रहे हैं कि जीवन भर भतीजे राज ठाकरे को राजनीति सिखाने के बाद वह बेवफ़ाई कर गया इसलिए उसे ठाकरे परिवार का नहीं मानना चाहिए.

अभी इस पर संघ-परिवार की ओर से कुछ सुनाई नहीं पड़ा है. कहा जा रहा है कि वे विश्लेषण और मंथन कर रहे हैं कि कहीं आडवाणी जी ने नितिन गडकरी को अध्यक्ष बनाने की नाराज़गी में संघ-परिवार पर तो टिप्पणी नहीं की है?

भाजपा के राष्ट्रीय सम्मेलन में जब से लालकृष्ण आडवाणी ने परिवारवाद की राजनीति पर टिप्पणी की है तब से कांग्रेसी बगलें झाँक रहे हैं. वे कह रहे हैं कि नेक काम की शुरुआत तो अपने घर से ही होनी चाहिए और यदि कोई अपने परिवार को आगे नहीं बढ़ाएगा तो देश को कैसे आगे बढा़ सकेगा? कांग्रेस का एक धड़ा कह रहा है कि वे भाजपा पर परिवारवाद की राजनीति के लिए पलटवार इसलिए नहीं कर रहे हैं क्योंकि वे एक ही परिवार को परिवार मानते हैं शेष को वे देख ही नहीं पाते.

कहा जा रहा है कि मुलायम सिंह यादव की पार्टी ने कहा है कि आडवाणी परिवारवाद की बात कहकर सेक्युलर ताक़तों को कमज़ोर करना चाहते हैं. उन्हें आशंका है कि कहीं आडवाणी जी को अमर सिंह ने बरगला तो नहीं लिया.

जनता असमंजस है कि किस परिवार की राजनीति को परिवारवाद माने और किसे नहीं?

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