हाइवे पर हम्माम
शेरशाह सूरी ने जब ग्रैंड ट्रंक रोड बनवाई तो उन्होंने सड़कों के किनारे पेड़ लगवाए, सरायें बनवाईं और कुँए खुदवाए. लेकिन उन्होंने सड़क के किनारे हम्माम नहीं बनवाए.
शायद इसकी दो वजहें रही होंगीं. एक तो वह योद्धा थे और उन्होंने जो कुछ भी किया वह अपनी सेना को ध्यान में रखकर ही किया. भले ही उससे समाज के दूसरे हिस्सों का भी भला हो गया.
दूसरा वह अफ़ग़ान थे और मध्यपूर्व के दूसरे देशों की हम्माम की संस्कृति का उन पर कोई असर नहीं था.
लेकिन इस समय हाइवे के किनारे अगर आपको हम्माम मिल जाए तो?
हाइवे हिंदुस्तान की टीम को बंगलौर से चित्रदुर्ग जाते हुए एक ढाबे के सामने मिला एक हम्माम - संगीता हाइवे हम्माम.
उत्सुकता से वहाँ जाने लगा तो सामने तीन-चार किन्नरों को देखकर डर सा लगा. बगल में एक दुकानदार से पूछा तो उसने आश्वस्त किया.
रानी, पवित्रा और माधुरी नाम के तीन किन्नरों से वहाँ मुलाक़ात हुई.
उन्होंने बताया कि बंगलौर में ऐसे 140 हम्माम हैं. वे बताती हैं कि ट्रक वालों से लेकर सामान्य लोग इनका इस्तेमाल करते हैं.
वे इस बात से इनकार करती हैं कि वहाँ मसाज के अलावा कुछ और भी होता है. रानी कहती हैं कि वे बंगलौर जाकर भीख माँग लेती हैं लेकिन ऐसा-वैसा काम नहीं करतीं.
पुलिस को लेकर उनके मन में कोई डर नहीं दिखता इसलिए वे उनको घूस भी नहीं देतीं यानी उनके लिए मसाज की कोई सुविधा नहीं.
इस हम्माम को देखकर आश्चर्य भी हुआ. एक कमरे और टॉयलट वाले इस हम्माम की तुलना आप मध्यपूर्व के हम्माम से नहीं कर सकते और न रोमनों के बाथ से.
फिर भी यह एक मुकम्मल हम्माम है.
ज़हन में आता है कि हम भले ही उन्हें हम्माम न कहें लेकिन अब तो हर गली चौराहे पर हम्माम खुलने लगे हैं. स्पा, स्टीम और सौना बाथ के नाम से.
अब बिल्डर मकान बेचता है तो यह कहने से बच जाता है कि हम आपको हम्माम बनाकर देंगे. वह कहता है कि स्टीम और सौना बाथ होगा.
होटलों में ग्राहकों के लिए मसाज और स्पा विशेष आकर्षण होता है.
हम्माम बोलने में सकोच होता होगा कि वहाँ तो हर कोई नंगा होता है.
और नंगा होने का सच सार्वजनिक रुप से ज़ाहिर तो नहीं किया जा सकता ना?
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