शनिवार, 11 दिसंबर 2010

बैठक की रिपोर्ट

5दिसंबर2010 को वैशाली के कृष्ण भवन, में बैठक की अगली कड़ी में राम शिरोमणि शुक्ल और श्रवण कुमार गुप्ता ने अपनी कविताओं का पाठ किया. दो-ढाई दशकों से पत्रकारिता कर रहे राम शिरोमणि लंबे समय से कविताएं लिखते रहे हैं. हालांकि एक लंबा अंतराल भी रहा है. इधर कुछ महीनों से उन्होंने यह सिलसिला फिर शुरू किया है. उन्होंने अपनी एक दर्जन छोटी-बड़ी कविताएं सुनाईं. इनमें कुछ राजनैतिक कविताएं भी थीं. मां, गौरया और बोलने का जोखिम जैसी छोटी कविताओं को साथियों ने खूब पसंद किया। तडि़त दादा ने उनकी कविताओं पर टिप्पणी करते हुए कहा कि उन्हें निरंतर लिखना चाहिए. उनके पास विषय की कमी नहीं है. विनोद वर्मा और अनिल दुबे का कहना था कि उनकी राजनैतिक कविताओं में पैनापन तो है, लेकिन उनमें उन्हें और का करना चाहिए. पार्थिव ने कहा कि गौरया कविता छोटी जरूर है, लेकिन यह ताजगी से भर देती है.

श्रवण कुमार गुप्त ने तीन कविताएं सुनाईं। इनमें से एक दंगे के बाद एक कस्बे के ताने-बाने में आए बदलाव को उन्होंने उकेरा है तो दूसरी कविता दलितों के साथ हुई ज्यादती और समाज में पैदा हो रही जागरूकता पर केंद्रित थी। यह कविता राजनैतिक वक्तव्य नहीं, बल्कि यथार्थ के धरातल पर मजबूती से खड़ी नजर आती है। उनकी इस कविता को तडि़त दा, विनोद वर्मा, अनिल दुबे, राम शिरोमणि, सुदीप ठाकुर सहित सभी साथियों ने सबसे अधिक पसंद भी किया. उनकी कविता उन तमाम लोगों की भावनाओं को व्यक्त करती है, जिन्हें काम के सिलसिले में अपने शहर से बाहर जाना पड़ता है और जब वे कभी लौटते हैं तब वह शहर बदल चुका होता है.

बैठक की अगली कड़ी 26 दिसंबर को होगी क्योंकि 19 दिसंबर को कुछ साथी शहर में नहीं होंगे.

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