शनिवार, 27 नवंबर 2010

बैठक की रिपोर्ट


इक्कीस नवंबर, कृष्ण भवन, वैशाली में हुई बैठक में सदस्यों ने अपनी - अपनी रचनाओं का पाठ किया । शुरुआत हुई डा. लाल रत्नाकर की कविताओं से । उन्होंने कविता सुनाने के पहले उन्होंने कहा कि किन मनस्थितियों में ये कविताएं लिखी गयी हैं। उन्होंने कहा कि उनकी कविताएं दलितों और समाज में उनकी हैसियत के बारे में है। उनकी कविताओं से ये साफ था कि वो दलितों के दर्द से वाकिफ हैं और ये दर्द बगैर किस ऐलान के बड़े ही सहज ढंग से उनकी कविताओं में झलकता है। यही उनकी कविता की ताकत है।


डा. लाल के बाद शंभू भद्रा ने कोशी की मार से सड़क पर आ गयी एक महिला की पीड़ा को कविता के माध्यम से कागज पर उतारा। शंभू मिथिला से ताल्लुक रखते हैं और उनका घर सुपौल जिले में पड़ता है। यही वजह है कि मैथिली में लिखी उनकी कविता में सिर्फ सच्चाई थी। और सच्चाई ये है कि लगभग हर साल कैसे कोशी हजारों परिवारों को सड़कों पर लाकर उन्हें भीख मांगने को मजबूर कर देती है जबकि सरकार अंधी - बहरी बनी सरकारी आंकड़े ठीक करने में लगी रहती है।

शंभू के बाद पार्थिव ने अपनी कहानी सुनाई। उनकी कहानी का नाम था -एक पुरानी कहानी-....

दरअसल उनकी कहानी सिर्फ कहानी नहीं थी बल्कि उत्तर प्रदेश, पंजाब, और हरियाणा की लोक गाथाओं के एक बेहद पुरातन पात्र को सामने लाने, उसमें प्राण प्रतिष्ठा करने की सफल कोशिश थी। पार्थिव की ये कहानी एक दलित की कहानी थी, इस कहानी से साफ हो जाता है कि दलित सिर्फ आज अपने हक और अधिकार के लिए नहीं लड़ता बल्कि सैकड़ों, हजारों साल पहले भी वह दमन और गैर - बराबरी के खिलाफ ब्रह्मणों और क्षत्रियों को ललकारने का माद्दा रखते था। किसी लोक कथा के चरित्र को अपनी भाषा और अपने शिल्प से सबके सामने ला खड़ा करना आसान नहीं होता लेकिन पार्थिव ने ये काम कर दिखाया। उन्हें बधाई।

पार्थिव की सशक्त कहानी के बाद विनोद वर्मा ने अपनी कविताओं के माध्यम से बताया कि कैसे प्रतीक्षा हमारे जीवन के हर पल को छूती है, हमारी जिंदगी, हमारा जीना - मरना सब कुछ प्रतीक्षा से जुड़ा है। जीवन के हर शह में प्रतीक्षा है।

इसके बाद तड़ित दा ने अपनी कविताएं पढ़ी। तड़ित दा की कविताओं में जीवन का सच था, उन्होंने कहा कि जीवन में संघर्ष होता है, निराशा भी होती है लेकिन इन सबके बावजूद एक उम्मीद बची रहती है। जुगनू नाम की उनकी कविता में यही उम्मीद दिखती है। यही उनकी कविता का सच था और शायद हम सबके जीवन का भी। हिटलर शीर्षक से लिखी उनकी कविता का संदेश यह था कि अन्याय से आप लड़ सकते हैं, उसे खत्म कर सकते है लेकिन आप उससे महज मतभेद रखकर उसके साथ रह नहीं सकते ।

कुल मिलाकर बैठक का ये दिन शानदार रहा और इस मायने में यादगार भी कि सदस्य कविता और कहानी के माध्यम से सबसे रुबरु हुए और अपनी बात सबके सामने रखी। इस बैठक में राम शिरोमणी शुक्ला, डा. अरविंदन, केवल कुमार, अनिल दुबे, जगदीश यादव और श्रवण कुमार गुप्ता उपस्थित थे। सबने माना कि बैठक में अब रंग आने लगा है और अब औपचारिकता की जगह गर्मजोशी ने ले ली है। आमीन।

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