बुधवार, 21 मार्च 2012

बैठक की रिपोर्ट

बैठक, 
26 फरवरी 2012


इस बार बैठक में प्रतिभाशाली कवि और उतने ही सजग पत्रकार चंद्रभूषण ने
अपनी कविताएं सुनाईं। इनमें तकरीबन दो- दशकों के दौरान लिखी गईं
नई-पुरानी दोनों तरह की कविताएं थीं। चंद्रभूषण के पास बड़ी रेंज है और
वे कविताएं में अद्भुत शब्दचित्र खींचते हैं, जिनमें गहरी रुमानियत तथा
फंतासी के साथ ही जीवन के संघर्ष के अक्स देखे जा सकते हैं। उन्होंने
खुशखबरी, भीड़ में दुःस्वप्न, गेरुआ चांद, माया मृग,  क्या किया,  ताश
महल, भूख से कोई नहीं मरता, पैसे का क्या है,  जैसी एक दर्जन से ज्यादा
कविताएं सुनाईं। बैठक के साथियों ने उनकी कविताओं को काफी सराहा और
खासतौर से रात में रेल और गेरुआ चांद कविता को पसंद किया।
उनकी कविताओं पर चर्चा की शुरुआत करते हुए विद्याभूषण ने कहा कि इन
कविताओं को सुनते हुए ऐसा लगा मानो हम एक नहीं दो कवियों को सुन रहे हैं।
एक मानो हलके से अपनी बात कहता है और दूसरा गहराई में खींचकर ले जाता है।
तड़ित दादा ने कहा,  'मैं इन कविताओं को सुनकर मगन हो गया। एक साथ इतनी
कविताओं को सुनने के बाद उस पर टिप्पणी करना बहुत मुश्किल है। ऐसा लगता
है कि काव्यात्मकता, रूमानियत, फंतासी, नाटकीयता, अंतरराष्ट्रीयता का
शब्दजाल बुन दिया गया हो और कमरे में अभी मोमबत्ती का जलाया जाना बाकी
हो।' उन्होंने कहा कि चंद्रभूषण  की कविताएं जब जमीन को छूकर चलती हैं,
तो वहां अच्छी लगती हैं। मगर जब धुआं फैलता है, तब पता नहीं चलता कि वह
किधर जाएगा।
प्रकाश ने कहा कि चंद्रभूषण को वे पढ़ते रहे हैं। उनकी कविताओं में मध्य
वर्गीय द्वंद्व को साफ महसूस किया जा सकता है। उनकी कविताओं में उनके
क्रांतिकारी इतिहास के साथ ही निजी अंतरद्वंद्व भी साफ दिखता है।
चंद्रभूषण की कविताओं में एक तरह की लय है।
पार्थिव कुमार ने चंद्रभूषण शब्दों को फूलों की तरह चुनते हैं और सावधानी
से गुलदस्ता तैयार करते हैं। वे दृश्य का निर्माण इस तरह करते हैं जिसमें
फेरबदल की गुंजाइश नहीं होती। उनकी कविताएं सोचने की आजादी कम देती हैं।
निधीश त्यागी ने कहा कि चंद्रभूषण की कविताएं संवेदनाओं से भरी हुई हैं।
उनमें महानगरीय मनुष्य के अंतरद्वंद्व और विवशताएं भी है और सेंसिबिलिटी
भी। रात में रेल उनकी सबसे शानदार कविता है जिसमें एक खास तरह की लय है।
विनोद वर्मा चंद्रभूषण की कविताओं को दो विपरीत छोरों से जोड़कर देखते
हैं. उनके मुताबिक उनकी कविताएं झूले की तरह एक छोर पर ले जाते हैं, जहां
कोई और दुनिया है और पलभर में ही वह खींचकर धरातल पर ले आती हैं। उनकी
कविताएं आश्वस्त करती सी लगती हैं।
सुदीप ठाकुर ने कहा कि चंद्रभूषण की कविताओं को सुनते हुए लगता है कि वह
लंबे अंतराल की कविताएं हैं, जिसमें रूमानियत, फंतासी के साथ ही जीवन की
जद्दोजहद साफ महसूस की जा सकती है।




चंद्रभूषण की कविता-  
रात में रेल


रात में रेल चलती है


रेल में रात चलती है


खिड़की की छड़ें पकड़कर


भीतर उतर आता है


रात में चलता हुआ चांद


पटरियों पर पहियों सा


माथे पर खट-खट बजता है


छिटकी हुई सघन चांदनी


रेल का रस्ता रोके खड़ी है


रुकी हुई रेल सीटी देकर


धीरे-धीरे सरकती है


अधसीसी के दर्द की तरह


हवा पेड़ों के सलेटी सिरों पर


ऐंठती हुई गोल-गोल घूमती है




आधी से ज्यादा जा चुकी रात में


सोए पड़े हैं ट्रेन भर लोग


लेकिन कहीं कुछ दुविधा है-


ड्राइवर से फोन पर निंदासी आवाज में


झुरझुरी लेता सा बोलता है गार्ड-


'शायद कोई गाड़ी से उतर गया है...


अभी-अभी मैंने किसी को


नीचे की तरफ जाते देखा है...'




नम और शांत रात में


उड़ता हुआ रात का एक पंछी


नीचे की तरफ देखता है


वहां खेत में रुके हुए पानी के किनारे


चुपचाप बैठा कोई रो रहा है


पानी में पिघले हुए चांद को निहारता


बुदबुदाता हुआ सोना...सोना...




और लो, यह क्या हुआ?


सात समुंदर पार भरी दोपहरी में


लेनोवो का मास्टर सर्वर बैठ गया!




घंटे भर बेवजह सिस्टम पर बैठी


जम्हाइयां ले रही सोना सान्याल


ब्वाय फ्रेंड को फोन मिलाती हैं-


'पीक आवर में सर्वर बैठ गया,


अमेरिका का भगवान ही मालिक है'


दू...र गुम होती लाल बत्तियां


फोन पर ही हैडलाइट को बोलती हैं-


'बताओ...ऐसे वीराने में ट्रेन से उतर गया,


इस इंडिया का तो भगवान ही मालिक है' 

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